10/31/2017

कच्ची रोटी



मैं एक ऐसी कहानी का हिस्सा हूँ 

जो मेरी नहीं हैं

मेरी जिंदगी वैसी बिल्कुल नही हैं 

जैसा मानना मेरी आजादी हैं।


इस कहानी में मुझे तर्क करने की आजादी है

मेरी मर्ज़ी से सांस लेने की भी

पर शर्त इतनी हैं 

मेरी सांसों से उनकी जड़ें न हिलतीं हों

शाखाओं का हिलना कल तक सहन था

अब उस पर भी लगा दी पाबंदी है।


मर जाने पे मुझे जलने देंते हैं

पर कहाँ जलूं जगह तय हैं

ताकि पवित्रता नष्ट न कर सकूँ

ऐसे इस कहानी में 

चीजों को पवित्र करने की परंपरा है

कुछ बुदबुदाना पड़ता है

पर बुदबुदाने की मुझे आजादी नहीं हैं।


मैं तब तक अच्छा हूँ 

जब तक बंद कमरे में हूँ

जब तक भूखा हूँ और

भूख को भूखा रखने में मददगार हूँ

जब तक गलत को सही कहूँ 

जब तक असामनता बनाये रखने दूँ।


मुझे सब कुछ देखने 

सब सुनने और

उफ्फ न कहने की आजादी है

और अपना शासक चुनने की भी आजादी है

और मैं शराब के बदले वोट बेचता भी नहीं

पर मैं भूखा हूँ

और मेरी भूख वरदान हैं 

उन सब के लिए

जिनका पेट ठूंसा हैं।


भात मांगना तो मौत हैं

भीख मांग लूं इतनी आजादी हैं

मैं भूखा हूँ

मुझे आजादी नहीं

अपना हक मांगने की

भूखा मर जाऊं

इतनी आजादी हैं।


मेरी जमीन मुझसे छीन ली हैं

सारे संसाधनों पर भी कुछ का कब्ज़ा हैं

और मैं ही दोषी हूँ

अपने हालात के लिए

मेरा ऐसा मानना ही मेरी आजादी हैं

इस से परे अधर्म हैं

पाबंदी कुछ भी नहीं।


मैं तो अब सिर्फ रोटी हूँ

एक ऐसी रोटी 

जो कच्ची हैं

और भूखी हैं।