हारोगे ही गांधी के
हत्यारे !
तुम्हे जीना ही होगा मुँह
छुपाके,
ये धरती सत्य की है,
झूठ तुम ढँक ही जाओगे।
महात्मा की करुणा में,
जब तुम निर्मल न हुए,
प्यार और श्रद्धा में,
जब तुम पावन न हुए,
गोडसे तुम्हें हारना ही होगा,
चाहे जहाँ जिस में
रहो।
मानवता मोहताज नहीं
भीड़ की ,
सत्य को दरकार नहीं
चीख की ,
एक अकेला "विक्रम" बोलेगा ;
गुंजायमान हो उठेगी धरा,
इस युग में उस युग में।
तुम्हे धूमिल होना ही
होगा,
क्षणिक चमक खोना ही होगा,
सत्ता की प्रश्रय में रहो
या,
भीड़ की दीवारें खड़ी कर
लो।
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