5/15/2012

"अन्जान मोहब्बत "


ये प्यार की लहरें 
यूँ ही न  बिखर जाएँ 
चट्टनों  से टकरा  कर 
सागर से पहले न  दम  तोड़ जाएँ 
अंजान  मोहब्बत और मै  अदना  सा 
कातिल  उनकी निगाहें और मै  सहमा सा 

कभी नजरें चुराता कभी खुद को छुपता 
चला मै  अपने धुन  में 
अंजान - अंजान मै सहमा सा 
अपनी निगाहों से  चलता उसे  घेरे 
कहीं जादू कोई चल  जाये ,
वो मरे प्यार में पड़ जाये   

दिल में लिए अरमान 
मै   प्यार में नादान 
कैसे उसको रिझाऊं 
कैसे उसको बेचैन कर जाऊं 
अपनी निगाहें से वो मुझे हटने ना  दे
ऐसे वो मुझे  अपनी निगाहों से घेरे 

प्यार में बेचैन मै
खुद  को  कहीं प्यार ना  कर पाऊं  
खुद को कर बदनाम  मै  
उसको कहीं खो ना जाऊं 
अंजान मोहब्बत   और मै  अदना  सा 
कातिल  उनकी निगाहें और मै  सहमा सा 

 मै नादान  चला करने प्यार का इजहार 
उन्होंने भी बड़े अदब से किया इंकार 
टूटे दिल और मंद -मंद मुस्कान लिए सोचता हुआ लौटा 
दुःख  किसका ,  टूटे दिल  या इंकार का 
हुई पहचान मोहब्बत  से और मै उलझा सा 
कातिल  उनकी निगाहें और मै अपने धुन  में  खोया-खोया सा  .


Note-Part of artwork is borrowed from the internet ,with due thanks to the owner of the photographs/art

5/14/2012

"हम सब चोर हैं" (ख़ुद क़े खिलाफ बगाबत य़ा सच )


अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
हम ने उन्हें खूब सराहा
सभी लेकर निकल पड़े झंडे 
हम भी अन्शन करेंगे,खायेंगे डंडे
यूँ भी हम रोज मरते हैं 
भूखे रह कर  अन्शन ही करते हैं
दिल्ली जाकर अन्ना के अन्शन  को बल देंगे
भारत को क्रप्शन मुक्त करेंगे
लगा क्रप्शन को उखड कर ही दम लेंगे  
न्याय-नीति की बात करने वाले
मिड-डे-मील चुराने वाले अध्यापक हो
प्रोक्सी लगा कर बंक मरने वाले,
एग्जाम की रात पड़ने वाले विद्यार्थीगन
सभी  ने जोर लगाया
अपने दामन   पे लगे दाग निकलना चाहा

लोन पास करने के लिए 10% लेने वाले बैंक अधिकारी हो
200  रूपये लेकर बर्थ देने वाले टीटी  हो
प्रक्टिकल में पैसे लेकर पास करते कोचिंग चलते  साइंस टीचर हो 
मोहर लगाने के लिए पैसे लेते चपरासी हो 
रोज न आने वाले बी.डी.ओ बाबु हो
ऑफिस का चाहे कोई बाबु हो 
सभी ने खूब जोर लगाया 
अपने दामन पे लगे दाग निकलना चाहा

जब भी कोई ऑफिस जाओ
साहब नहीं आये है कल आना का जुमला सुनो
रोज-रोज आने का क्या झंझट पालोगे 
जो पैसे भाड़े पे खर्च करोगे, मुझे दो
आपने परेशानी से बचो
साहब जब भी आयेंगे
हम तुम्हारा काम  करवाएंगे
अरे कुछ गलत भी होगा 
साहब को भी चना खिलाएंगे
आप निश्चिंत रहो,
घर पे जाओ, बच्चे के साथ समय बिताओ
ऑफिस के बाबु ने ऐसा समझाया 
हमारी भुझी बत्ती जल उठी
तब  हम न लड़े,अपनी परेशानी बचाई 
अपनी पीढ़ी को क्रप्शन की बीमारी दे डाली
अब  हमने भी खूब जोर लगाया
अपने दामन पे लगे दाग निकलना चाहा

अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
तब लालू हो या मुलायम
राहुल हों या कपिल
सभी को तब संसद की मर्यादा  याद आया 
संसद में बैठ कर जो कल तक सोये थे
बेंच तोड़ रहे थे,एक दुसरे को गाली दे रहे थे
कोई संसद में बैठ पोर्न देख रहे थे 
तब ये अर्जुन ,ध्रितराष्ट्र बने रहे 
जब अन्ना ने लोकपाल  माँगा 
सब नींद से जग गए 
सब ने एक स्वर में कहा
हम कानून बनायेंगे,जनता दूर रहे
हम हैं खाए पीये
जनता तो  है भूखी नंगी 
वो जब कानून बनाएगी संसद मैली न हो जाएगी 
अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
हम ने उन्हें खूब सराहा.

जब हमने संसद को चोर कहा
बल्त्कारी,धोखेबाज, घुसखोर  कहा  
सभी ने महसूस किया,कैसे वो बिदके 
चोर की दाढ़ी में तिनका सभी ने पढ़ा होगा 
जनता ने तब  महसूस किया
संसद में भाषण  गहराए
बहार वाले को लगता है 
अन्दर सभी बुरे बैठे हैं
माना आप ईमानदार  हो
आपने न कुछ बुरा देखा 
आपने न कुछ बुरा सुना
आपने न कुछ बुरा बोला
आप गाँधी के तीनो बन्दर बने रहे
गाँधी को भूल गए 
आपके साथी नेता खाते रहे 
आप मन बहलाते रहे 
आपनी पार्टी के टिकट  पर
क्रिमनल,बल्त्कारी,खुनी
दबंग  को संसद में लाते रहे
सच तो यही है सांसद  चोर है
संसद मर्यादाविहीन है

अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
तब  भाजपा हो,चाहे कांग्रेस 
चाहे गली छाप  राजनितिक  पार्टी हो
सभी ने खुद को पवित्र बताया 
जनता बहकावे में है
अन्ना और उनके साथी में वो दम कहाँ
हम कानून बनायेंगे
अन्ना जैसे लोगों पर 
संसद की मर्यादा पे नोटिश  भिजवायेंगें 
संसद अपना काम  अपने तरीके से करेगी
महिला बिल लटकी रहेगी 
संसद  सांसदों का  वेतन बढाने की कानून घंटे में पास करेगी
लोकपाल को सालों टला 
इस बार भी टालेंगे
हम मजबूत लोकपाल लायेंगे
वादा ही तो करना है,वादा कारने में हम  माहिर है
जनता रोजी- रोटी में उलझी थी
फिर उलझ जाएगी
संसद मजबूत लोकपाल लाएगी
अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
हम ने उन्हें खूब सराहा

अगर देखें सभी अपने अंतर में 
खुद में एक करप्ट को पाएंगे
और करप्ट क्या मजबूत लोकपाल लायेंगे
कैसे कैसे चोरी किया आपने 
खुद ये समझ जाओगे
खुद को तब किस जेल में डालोगे 
हम चोर है,हम चोर हैं
ये नारे क्या खुद के खिलाफ लगा पाओगे
हम सभी चोर हैं
सच यदपि  कहना पड़े
खुद के खिलाफ यदि लड़ना पड़े
सच तो यही है,सभी रोटी खाने में ही जुटे रहे
देश को भ्रष्ठ हाथों  में छोड़ कर
रोजी कमाने में उलझे रहे
अन्ना ने जब लोकपाल माँगा
हम ने उन्हें खूब सराहा
सभी लेकर निकल पड़े झंडे 
हम भी अन्शन करेंगे,खायेंगे डंडे
यूँ भी हम रोज मरते हैं 
भूखे रह कर अन्शन  ही करते हैं
दिल्ली जाकर अन्ना के अन्शन  को बल देंगे
भारत को क्रप्सन मुक्त करेंगे  


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5/10/2012

दीदी

दो अछर की मेरी दीदी
कहते हैं उसे लोली 
नाक उसके बड़े-बड़े 
आँखें उसकी गोल 
कभी न पटती मुझसे 
कभी न खेलती मेरे साथ खेल 
उससे तीन वर्ष का छोटा हूँ  
तीन वर्ष  बड़ा मानता हूँ अपने को
हर वक़्त रोब जमता 
कहने का हूँ मै छोटा 
कभी न उसकी मै सुनता 
जो मन आता मै करता
माँ से भी डांट  सुनाता हूँ
भाई के सामने भी नीचा दिखता हूँ 
गुस्सा मुझ पे वो करती 
हर वक़्त मुझसे वो लडती 
फिर भी मेरी वो फ़िक्र करती 
दो अछर की मेरी दीदी 
कहते हैं उसे लोली.
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5/03/2012

"अलग -थलग "

मै  पड़ गया हूँ अलग थलग
जागने सोने के चक्कर में 
खोने पाने के क्रम में
दुःख सुख के जाल में
नाम अमर और बदनाम होने के भैय  से 

मै पड़ गया हूँ अलग थलग
अपनों के बिछड़ने के डर से
बहार आने से पहले उजड़ने के डर से
फूलों के मुरझाने से 
कांटें चुभने  के डर से 
 मै पड़ गया हूँ अलग थलग 

अपनों की भीड़ में 
परायों  के  चक्कर में
मरने के डर से जीने के चक्कर में 
मै पड़ गया हूँ अलग थलग

सबसे दूर हो गया  हूँ
रेल के सफ़र में 
रेल समय पे आने पे 
रेल छुटने के भैय से 
रिक्सा खोजने के चक्कर में 
पैदल ही पहूच गया हूँ स्टेशन 

मै पड़ गया हूँ अलग थलग सफ़र में
रेल की सवारी में सीट ना मिलने पर 
अपने डब्बे में चल रहे हम सफ़र से 
बहस छिड़ जाने के भैय से 
खड़े ने रह कर बैठने के चक्कर में

मै पड़ गया हूँ अलग थलग 
आज कल के चक्कर में 
मै पड़ गया हूँ घन-चक्कर में 
नींद न न पे भी आँख बंद किये रहने के चक्कर  में

मै पड़ गया हूँ अलग थलग
सफ़र पूरा होने पे 
पानी भर ने में
प्यास बुझाने  के चक्कर में
खाना खाने के क्रम  में
पानी ही पी लेता हूँ उलझे पल में  

मै पड़ गया हूँ अलग-थलग  जीवन में.
जिन्दगी भी रेल के सफ़र जैसी है
अलग थलग उलझी-उलझी है
जिन्दगी के बारे में सोचने के चक्कर में
मर रहा हूँ मै हर पल में 
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