9/24/2014

"ड्स्ट्बीन के सहारे स्वर्ग"

तुम गरीब क्यों जिंदा हो,अमीर शर्मिंदा है

तुम कुड़े भी चुरा लेते हो,अमीर शशांकित जीता है
ये तुम्हें कुड़े देकर अहसान न जता पाते है
तुम मे क्यों कुड़े चुराने का   हौसला है ।
अपनी तिजोरी को बचाने मोटे ताले बनाए है
तुम्हारे जीने की जीविवसा से डर कर
धर्म, पूर्व-जन्म के कर्म-फल के पहरे लगाए है
तुम्हारे हौसले पे अब क्यों न धर्म का पहरा है।
तुम भीख मांगते कितने अच्छे हो, कोई जेल-बेल नहीं है
मोटे बटुए को भी  धर्म कर कितना सकूँ मिलता है
सर झुका कर जियो भूखे तड़पो चाहे मर जाओ
मोटी तिजोरी को न देखो धर्म करो स्वर्ग जाओ ।
तुमने कुड़े चुरा कर घोर पाप किया है
मरने पर नर्क जीते जी घुट-घुट कर जेल जाओ
तुम गरीब क्यों जिंदा हो,अमीर शर्मिंदा है
तुम कुड़े भी चुरा लेते हो,ये अमीर शशांकित जीता है।
सहजादे की नजर उतरवाने हलुआ-पूरी तुम्ही तो खाते हो
और तुम्हारे लिए ही तो ड्स्ट्बीन मे पड़ा खाना है
फिर क्यों कुड़े चुराते हो,अमीर नाजुक धर्मी को डराते हो
वो कुड़े यूं भी तुम्हें दान कर देते कुछ तस्वीर खिचवाते
तुम्हारी गरीबी का बाज़ार सजता, कुछ तिजोरी भर जाती
अमीरज़ादे तुमपे प्रोजेक्ट-वर्क करते,कुछ टूटीपंक्तियाँ लिखते  
देखो न अदना सा “प्रशांत”भी कवि बन जाने को कैसे आतुर दिखता है।

गंगा को गंदा कर अमीरों ने विकाश किया है
तुम गरीब, अमीर की नकल करते हो, तुमने शहर गंदा किया है
तुम्हारी गदगी फैलाने पे खफा अमीर शर्मिंदा है
तुम भूखे रहो, तड़पो तुम्हें अब अमीरों के कोप झेलना है
गंगा को बरसों से गंदा किया है,अब वरसों लगा स्वाछ बनाएँगे
करोड़ों खर्च करेंगे तेरे लिए अब वो तिजोरी खाली दिखाएंगे।
  
तुम तो ड्स्ट्बीन से खाकर भी चोरी करने लगे हो
हीरे-मोती खाने वाले से होड़ करने लगे हो,
कुड़े की चोरी करने लगे हो,धर्म की अवमानना करने लगे हो
अब गंगा महिमा ही धर्म बचाएगी,
स्व्छ जल कीड़े पनपने न देकर तुम्हें डराएगी
तुम्हें पाप धुलने को वेबस कर,तुमसे डुबकी लगवाएगी
तुम्हें ड्स्ट्बीन के सिद्धि के सहारे स्वर्ग  पहुचएगी।
तुम गरीब क्यों जिंदा हो,अमीर शर्मिंदा है
तुम कुड़े भी चुरा लेते हो,अमीर शशांकित जीता है
ये तुम्हें कुड़े देकर अहसान न जता पाते है
तुम मे क्यों कुड़े चुराने का   हौसला है।

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