11/03/2015

"पर सियासत इसपे डोरे डालता है"

रात इतनी खामोश है या इसमें भी कुछ स्वर है
गहरे सन्नाटों में भी क्या कोई हलचल है
तेज चलती सांसें भी कुछ कहने को आतुर है
झुकी पलकों का इशारा सब राज खोलती हैं
हम भी नादाँ वो भी चुप हैं,हमारी आहें सब बोलती हैं .

अपनी ख़ामोशी रातों के सन्नाटें इतनी जल्दी कैसे टूटे
मासूम खिलखिलाहट वादियों में कैसे गूंजे
सभी यहाँ मानवता के हत्यारें हैं
जब कोई लाठी(न्याय ) उठे कोई सर कैसे ना फूटे
मासूम सा रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है
सुना है बातें बड़ी समस्यायें तोड़ती है.

रात इतनी खामोश है या इसमें  कोई साजिस है
गहरे होते सन्नाटे में भी क्या कोई बैचैनी है
तेज चलती सांसे भी कुछ सहमी सहमी है
झुकीं पलकें है या ऑंखें ही फूटी है
मासूम रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है,

मासूम सवाल भी अब हिलोरें मरना चाहता है
कहाँ है वो पालक जिसने पालक होने का दावा किया है
इन्सान भले ही किसी को माने  पर पालक तो वही हुआ है
मासूम सवाल मासूम हल चाहता है.

नादान है ये रात जो शांत होने का दावा करती है
ख़ामोशी से भरी आवाज भी चीत्कारों से भरी है
ख़ामोशी चीखती है सहमी निगाहें खुद में गिरती है
ढूँढती है असंख्य निगाहें अपने पालक  को
पर लाशों के ढेर पर बैठा हर कोई यहाँ
लज्जित कोई आये तो कैसे आये .

नादान ये रात है जो अब भी खामोश है
ये सन्नाटों की साजिश है जो बैचैन नहीं है
ख़ामोशी से भरी आवाज भी चीत्कारों से भरी है
मासूम रिश्ता हमारा मासूम हल चाहता है
पर सियासत इसपे डोरे डालता है.

11/01/2015

Meri dhadkan ne meri 
uljhano ka majak banaya hai
Dard kyon hai,use pata hai
Meri Uljhano ka wo bhi ek hissa hai
Meri uljhan meri tarp fir na jane kyon
 uskee hiloron ka hissa hai.
Kise apna manu jiske sang mai samadhi ko paa lun
Sach mera hissa tha kal tak
Aaj jhuth mere mathe pe tika hai.
Ro ro kar apne aap ko nirmal
kab tak karta rahun
Apni dhadkan ko kab tak
aapni chahat ka hisaa rakhun
Aaj ye uljhan hai aan padi hai
Dhadkan ko hi jivan samjhun
Yaa use jivan ka hissa rakhun.
Kas meri dhadkan ki dhun mere dhun se mil jaye
Ho kar rami mere sang chale .
Meri uljano ko suljhaye.

उम्मीद



बार-बार ठुकराये जाने को मै
चले आता हूँ तेरे पास प्रिये ,
तुम झिड़क देती हो ,चला जाता हूँ मै
मुझे मेरा खो जाना है स्वीकार प्रिये.

अपने आप को समर्पित कर जाने को मै
अपना जीवन उपहार लिए आता हूँ मै
दर्द पाने को बारम्बार प्रिये
अपना कल मुझे खो जाना है स्वीकार प्रिये .

आंखे मूंद तुझे पाने को मै
तेरे पीछे बेतहासा भागा आता हूँ,
ठोकर खा कर गिर जाने जाने को बार-बार प्रिये
अपना समूल नष्ट हो जाना है स्वीकार मुझे .

दिल का एक कोना अँधेरे में है
उस कोने में डूब जाना स्वीकार मुझे,
बार-बार ठुकराये जाने को मै
चले आता  हूँ तेरे पास प्रिये. 

1/24/2015

“ क्या लिखूं “


    क्या लिखूं?

जीवन के हर हिस्से पर
लहु के हर कतरे पर
स्वप्नों के हरेक सांस पर
तेरा अधिकार लिखूं
दर्द लिखूं या हर्ष लिखूं
प्रिये लिखूं या जान लिखूं
तू मुझ से इतर कहाँ है
मै तेरा हूँ तू मेरी है.
  
  क्या लिखूं?

उलझन लिखूं या समाधान लिखूं
तड़प लिखूं या प्रशांत लिखूं
मेरे हरेक गीत हर टूटी पंक्तियाँ तेरी है
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है
तू मेरी प्रेरणा मेरी हमजोली है
मेरी अंधभक्ति मेरी सहनशक्ति है
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है.
   
   क्या लिखूं?

फ़क़ीर लिखूं कबीर लिखूं
मदिरा लिखूं अजान लिखूं
मीठी थपकी लिखूं आग लिखूं
तू मुझ से इतर कहाँ
मै तेरा हूँ तू मेरी है
  
   क्या लिखूं?

कंगन की हथकड़ियाँ लिखूं
पायल की बेड़ियाँ लिखूं
समझौते का सागर लिखूं
सिंदूर का स्वांग लिखूं
सम्मानित चौखट की लकीर लिखूं
एक पिंजरे के बदले दूसरा पिंजरा लिखूं
   
   क्या लिखूं?

आजादी तुझे दान लिखूं
दुर्गा लिखूं शक्ति लिखूं
लाल चुंदरी का फास लिखूं
लक्ष्मण रेखा लिखूं
अग्नि परीक्षा लिखूं
सभ्यता संस्कृति का बखान लिखूं
   क्या लिखूं?
 

1/17/2015

कुछ तो असर होगा तेरा





अजनबी थे बेहतर
सोचा करता था मगर

इतना सुकून कहाँ था
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का.

कि स्थिर हुआ जाता है अब मन
व्यथित जो घूमता था कल तक
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का.

ख्वाब के पंख थे
उड़ने की कोशिश में रहता था

मगर ख्वाब में जान अब आई है
पाँव टिकने को हैं अब जमीं पर
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा होने का

बेतरतीब सी जिन्दगी का मालिक था मै

रात-रात भर जगा करता था
मगर सुबह सोने का मतलब अब बनता है
कुछ तो असर होगा तेरा
तेरा नेह होने का.....