7/07/2013

''तुम सब लड़ो दोनों देशद्रोही सत्ता में रहेंगे''

अयोध्या में मन्दिर मेरे खून पे बनेगा
अयोध्या में मस्जिद मेरे खून पे बनेगा
एक तुम से तेरा खुदा मंगता  है
एक तुम से तेरा राम-लल्ला मंगता है
दोनों आपस में कभी ना लड़ेंगे
तुम सब लड़ो दोनों देशद्रोही सत्ता में रहेंगे

अगर रख नही सकते अपने दिल में राम को
अगर रख नही सकते अपने दिल में खुदा को
तो अपने-अपने हिस्से का राम निकालो
आओ भाई तुम भी अपना खुदा लाओ
अपना-अपना बोझ तुम उतारो
राम भी भारी है अल्ला भी भारी
करने हैं जो सारे पाप पापी
कैसे ढो पओगे आपने साथ ये सारथी साथी

आओ अपने हिस्से का राम लाओ
आओ अपने हिस्से का खुदा निकालो
उसको अयोध्या में बिठा लाऊं
तुम सब लड़ो मुस्सल्मन मारो
तुम सब लड़ो हिंदू जलाओ 
रहने दो सत्ता में राम-खुदा के पापी.

जो रख सकते हो
अपने साथ अपना राम सारथी साथी
जो रख सकते हो
अपने साथ अपना खुदा  सारथी  साथी
लेकर घुमो अपने दिल में
अपना-अपना सारथी साथी
क्या करना तब अयोध्या या काशी

करने है हम सब को काम काफी
स्कूल बनवाने हैं ज्ञान फैलाने हैं
अस्पताल बनवाने हैं बंदों को सँवारने हैं
रोटी उपजानी है भूखों को खिलना है
हर आँगन में खुशी के फुल खिलने है
अभी खाना है कहाँ जो  चैन साथी
अपना राम अपना खुदा सारथी
तब क्यों देना इन रंगे सियारो को अपना हाथ साथी

अभी अगर आयें ये अल्ला-राम के सौदागर
सत्ता के लिए देश को गिरवी रखने वाले कायर
उनसे कह देना मेरा राम ले सको तो ले लो
उनसे कहना मेरा खुदा ले सको तो ले लो
वो तुम देशद्रोहियों से ना सम्हल सकेगें
उन्हें दिल में रहने कि आदत है
वो तेरे छोटे से मन्दिर में ना रह सकेंगे
उन्हें जन्नत जैसे वादियों में रहना है
वो तेरे खोटे से मस्स्जिद में क्या करेंगे
मानवता के दुश्मन अपने-अपने राम-खुदा निकालो
उसको मन्दिर में बिठाओ उसको मस्स्जिद में सजाओ
मेरा राम तो मुझको प्यारा है मेरा खुदा मुझको दुलरा है
उसको मन्दिर-मस्स्जिद कि आदत नही मेरे दिल कि आदत है
मै उसके बिना वो मेरे बिना  रह ना सकेगा

आओ लड़ने लड़ाने-वालों आपने-अपने हिस्से का खुदा- राम निकलाओं
आपस में लड़ो और मर जाओ
देश को अब बक्शो छूने दो बुलंदी को
जीने दो देश भक्तों को बनने दो विश्व-शक्ति
तेरे राम-खुदा हम अपने दिल में बसा लेंगें
तुम दोनों ना होगे तो पुरे देश को

मन्दिर-मस्जिद सा पवित्र हम बना देंगे.

6/14/2013

"गोपियाँ क्या करें "


गली गली हर चौराहे पर 
बाल बचपन ज़िन्दगी के दोराहे पर 
यहाँ हर कोई मुरलीवाला है 
अब गोपियाँ  बेचारी क्या करें 

किसके लिए सुध-बुध खोये 
किसको स्वामी मान मान जीवन सुख भोगे 
बड़ी व्यथा है बड़ी उलझन है 
एक नहीं अब यहाँ सभी गिरिधर हैं 

प्रश्न  उठता हो उनके भी मन में 
बदला है दौर अब वो क्या करे वृंदावन  में 
बदल गया है प्रेम बीते कल का वो क्या करे 
प्रेम की नई परिभाषा गढ़े या जिया बन जीवन त्याग करे 

बाँटने  को तो खुद को वो  बाट दे 
पर मन की  अधीरता क्या करे 
जब  तक ना मिले मन असली मोहन से 
वो हर नकली मोहन का क्या करे. 


2/01/2013

"शब्दों को मिटा दें "


आग उगलते शब्द 
शब्दों से ही जलते हम 
शब्द के सहारे हैं सारे 
प्यार भी है शब्द 
नफरत भी है शब्द 
हम से शब्द जाने हैं 
शब्दों के सहारे आज 
आओ नफरत की बात करें 
क्वाइसी शब्द को तोड़ें 
अहम का मुख मोड़ें 
ठाकरे शब्द को निचोड़ें 
भाजपा का सच घोलें 
गांधी को बताएं, सच बोलें 

आओ खुद को जला दे 
शब्दों को मिटा दे 
रूमानी गालियों को 
फड़फड़ाती धड़कनों के दर्द 
किस्मत औ उलफत की कहानियों को 
खुदा औ खुदा के डर 
गरीबी,लाचारी औ बेबसी 
लड़खड़ाती जुबानों की तन्हाइयों को 
धर्म का दंभ 
रिवाजो के बोझ 
समाज के बंधन
दम घोटते संस्कारों को। 

आओ मै औ तू मिटते है 
मै राम मिटता हु 
तू रहमान मिटाना 
मै हिन्द मिटाता हु 
तू पाक मिटाना ।
मै अपना मिटाता हु 
तू गैर मिटाना 
मै चुनाव मिटाता हूँ 
तू मतदान मिटाना ।
मै कानून मिटाता हु 
तू संविधान मिटाना।
मै तू मिटाता हु 
तू मै मिटाना ।

आओ इशारों मे बात करें
वादी को शब्द विहीन कर दें 
माथे के सिकन को समझें
मानवता की गर्माहट बिखरने दें  
कुलकुलाहट गूंजने दें 
धड़कन संगीत सुने 
साँसों की गहराइयों को जाने 
मुखरित अम्बक पहचाने
अमिय आमोद  पुष्प बिछाएँ 
धरित्री को विहार माने 
शब्दों को मिटा दें 
इन्सानों को जिंदा कर दें ।

1/03/2013

"क्या गिला मै क्या हूँ "


क्या पता मै कहाँ हूँ 
क्या गिला मै क्या हूँ 
वक़्त चलता जाए
मै बढ़ता जाऊँ
जब चाह मौन रहूँ 
जब मन रों दूँ 
जब चाह मै गाऊँ
जब  राह मिले चल पड़ूँ
क्यों राह को मैं जानूँ
क्यों वादा करूँ
क्यों आस रखूँ 
देखना हो राह अगर 
खुद का मै इंतजार करूँ
मै मदिरा पान करूँ 
या बिन पीये टल्ली हो जाऊँ
होना हो बहसी अगर 
खुद को मै गिल जाऊँ
क्यों व्यापार करूँ 
क्यों कोई सत्ता स्वीकार करूँ 
मै मस्त दरिया बन बहूँ 
पंछी बन उड़ जाऊँ 
मंजिल जिंदा रहे 
मै मिट जाऊँ

1/02/2013

"चाहत सर्वस्य अर्पण की "


रव ने मुझे दी है जितनी सासें 
तुझे देता हूँ 
अपना आज भी और कल भी देता हूँ 
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी खुशियाँ 
तुझे देता हूँ 
तेरे गम को अपना मानता हूँ 
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी सफलता
तुझे देता हूँ
तेरी असफता अपना मानता हूँ
मिले सफलता तुझे मेरी भी
दुआ मांगता हूँ

जो कुछ मांग सकूँ खुदा से
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,वो वक़्त मांगता हूँ
जो न मिले किसी को तुझे मिले
तेरी मंगल कामना मांगता हूँ

मै तेरे आसूं बहाऊँ
तुम मुस्कुराती रहो,दुआ मांगता हूँ
तेरे गम को अपना मानता हूँ
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ

तेरे हिस्से का अंधेरा
मुझे मिल जाए
तेरे हिस्से आए दिया रोशनी का
जो अंधेरा तुझे मिले,क्षमा मांगता हूँ

जिंदा न रहूँ मर जाऊँ
अपनी रूह तुझे अर्पित करता हूँ
चाहत सर्वस्य अर्पण की
जो कुछ न कर सकूँ अर्पण क्षमा मांगता हूँ।