1/03/2013

"क्या गिला मै क्या हूँ "


क्या पता मै कहाँ हूँ 
क्या गिला मै क्या हूँ 
वक़्त चलता जाए
मै बढ़ता जाऊँ
जब चाह मौन रहूँ 
जब मन रों दूँ 
जब चाह मै गाऊँ
जब  राह मिले चल पड़ूँ
क्यों राह को मैं जानूँ
क्यों वादा करूँ
क्यों आस रखूँ 
देखना हो राह अगर 
खुद का मै इंतजार करूँ
मै मदिरा पान करूँ 
या बिन पीये टल्ली हो जाऊँ
होना हो बहसी अगर 
खुद को मै गिल जाऊँ
क्यों व्यापार करूँ 
क्यों कोई सत्ता स्वीकार करूँ 
मै मस्त दरिया बन बहूँ 
पंछी बन उड़ जाऊँ 
मंजिल जिंदा रहे 
मै मिट जाऊँ

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