1/02/2013

"चाहत सर्वस्य अर्पण की "


रव ने मुझे दी है जितनी सासें 
तुझे देता हूँ 
अपना आज भी और कल भी देता हूँ 
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी खुशियाँ 
तुझे देता हूँ 
तेरे गम को अपना मानता हूँ 
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी सफलता
तुझे देता हूँ
तेरी असफता अपना मानता हूँ
मिले सफलता तुझे मेरी भी
दुआ मांगता हूँ

जो कुछ मांग सकूँ खुदा से
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,वो वक़्त मांगता हूँ
जो न मिले किसी को तुझे मिले
तेरी मंगल कामना मांगता हूँ

मै तेरे आसूं बहाऊँ
तुम मुस्कुराती रहो,दुआ मांगता हूँ
तेरे गम को अपना मानता हूँ
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ

तेरे हिस्से का अंधेरा
मुझे मिल जाए
तेरे हिस्से आए दिया रोशनी का
जो अंधेरा तुझे मिले,क्षमा मांगता हूँ

जिंदा न रहूँ मर जाऊँ
अपनी रूह तुझे अर्पित करता हूँ
चाहत सर्वस्य अर्पण की
जो कुछ न कर सकूँ अर्पण क्षमा मांगता हूँ। 

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