3/29/2018

सत्ता दंगा , दंगा सत्ता

मैं आज भी उतना ही सच हूँ
जितना कल तक दुनियाँ मान नही पाती थीं
हर सच्ची बातें
जो दुनियाँ को मैं कहता हूं
उतना ही झूठ मैं खुद से कहता हूं
मैं नेता हूँ
लो आज मैं झूठ हूँ
उतना ही
जितना कल तक सच था
कल तक मैं गुजरात था
आज मैं बिहार हूँ
हाँ, मैं वहसी दंगा हूँ
आज भी मेरे अंदर
सब को जलाने का जुनून हैं।
मैं फेंका गया मांस हूँ
जो खून की प्यासी हैं
बस मंदिर पे गाय हूँ
और
मस्जिद पे सुअर गंदा हूँ।
मैं सत्ता हूँ
सत्ता पे काबिज झूठ हूँ
शोषक, बेखौफ ,बेलगाम
हाँ मैं पहरा हूँ
सृजन की शक्ति पर
सृजन की सोच पर।
मैं ही गुजरात हूँ
मैं ही बिहार हूँ
मैं आदमखोर हूँ
मासूमों के खून से
मेरी जड़ें मजबूत हुई हैं
इतिहास गवाह है
मैं अत्याचारी गुरूर हूँ
मैं राम के नाम का सौदागर हूँ
मैं मंदिर- मस्जिद की कुव्यवस्था हूँ
हाँ मैं आज भी उतना ही सच हूँ
मैं स्कूल नहीं हूँ
मैं लाइब्रेरी नहीं हूँ
मैं रोजगार नही
मैं विकास भी नहीं हूँ।

3/07/2018

बंद कमरे

बंद कमरे में
इन बहरी दीवारों के संग रहकर
मैं भी बंद हो गया हूँ
अब जो कुछ भी मेरे अंदर पहुंचती है
उन पुरानी किताबों से
जो बहुत पुरानी बातें करती है
या मुझे झूठी दुनिया का दर्शन करवाती है
और जो कुछ नया ताजा 
मेरे अंदर प्रवेश पाना चाहता है
छानने लगती हैं
परीक्षाओं की छन्नी से
और छण कर जो मेरे अंदर पहुंचती है
मुझे कुछ नया नही करती है
मैं अपनी उद्वेलना को
बंद कमरे में दफन कर बाहर निकलता हूँ
बाहर की दुनिया जो जीवित है
और जीवित होने का स्वांग भी कर रही है
पर, मैं बंद कमरे का आदी हो चुका हूं
चीखती आवाजें मेरे भीतर की दीवार को
भेद नही पातीं हैं।