1/03/2013

"क्या गिला मै क्या हूँ "


क्या पता मै कहाँ हूँ 
क्या गिला मै क्या हूँ 
वक़्त चलता जाए
मै बढ़ता जाऊँ
जब चाह मौन रहूँ 
जब मन रों दूँ 
जब चाह मै गाऊँ
जब  राह मिले चल पड़ूँ
क्यों राह को मैं जानूँ
क्यों वादा करूँ
क्यों आस रखूँ 
देखना हो राह अगर 
खुद का मै इंतजार करूँ
मै मदिरा पान करूँ 
या बिन पीये टल्ली हो जाऊँ
होना हो बहसी अगर 
खुद को मै गिल जाऊँ
क्यों व्यापार करूँ 
क्यों कोई सत्ता स्वीकार करूँ 
मै मस्त दरिया बन बहूँ 
पंछी बन उड़ जाऊँ 
मंजिल जिंदा रहे 
मै मिट जाऊँ

1/02/2013

"चाहत सर्वस्य अर्पण की "


रव ने मुझे दी है जितनी सासें 
तुझे देता हूँ 
अपना आज भी और कल भी देता हूँ 
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी खुशियाँ 
तुझे देता हूँ 
तेरे गम को अपना मानता हूँ 
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ 

रव ने मुझे दी है जितनी सफलता
तुझे देता हूँ
तेरी असफता अपना मानता हूँ
मिले सफलता तुझे मेरी भी
दुआ मांगता हूँ

जो कुछ मांग सकूँ खुदा से
जो वक़्त गुजरे तेरे बिना,वो वक़्त मांगता हूँ
जो न मिले किसी को तुझे मिले
तेरी मंगल कामना मांगता हूँ

मै तेरे आसूं बहाऊँ
तुम मुस्कुराती रहो,दुआ मांगता हूँ
तेरे गम को अपना मानता हूँ
जो गम तुझे मिले क्षमा मांगता हूँ

तेरे हिस्से का अंधेरा
मुझे मिल जाए
तेरे हिस्से आए दिया रोशनी का
जो अंधेरा तुझे मिले,क्षमा मांगता हूँ

जिंदा न रहूँ मर जाऊँ
अपनी रूह तुझे अर्पित करता हूँ
चाहत सर्वस्य अर्पण की
जो कुछ न कर सकूँ अर्पण क्षमा मांगता हूँ।