4/30/2012

"कितने अच्छे लगते हैं "

पेड़ झूमते
लोग झूमते
मोर नाचते 
गायक गाते
कितने अच्छे लगते हैं
हरयाली पेड़ की श्रृंगार
मस्ती लोगों की शान
सुनहरे पंख मोर के
कंठ सुनहरे गायक के
मन को भाते
कवि पढ़ते कविता 
गायक सुनते गाना
लगते कितने अच्छे 
मन को भाते
बच्चे की तोतली  बोली
कोयल की मधुर कुंक 
कौआ की काऊं-काऊं
मेढक की टर-टर
जीवन में संघर्ष 
मन का प्रेम
सुबह  की ठंढक
रत की अन्धेली 
चंद्रमा की रोशनी 
सूर्य की गर्मी
टीचर  के गुस्से 
सोचते बच्चे 
कितने अच्छे लगते हैं.
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4/28/2012

"भिखारी"

अल्लाह के नाम पे दे दे  बाबा 
अल्लाह के नाम पे दे दे ......
अबाज में दर्द भरी मिठाश 
आँखों में नमी कटोरे हाथ
कोई डाल देता एक सिक्का 
उसके कटोरे में
वह हो उठता निहाल
देखता उसे टकटकी लगा
उसकी खनकती अबाज उसे सुख देती
बार- बार उसे खनकता रहता
कोई देता उसे दुत्कार
उभरती मासूमियत भरी रेखा
उसके चेहरे पर
फिर वही अबाज,
अल्लाह के नाम पे दे दे  बाबा


अल्लाह के नाम पे दे दे ......
सबों को आशीष दिए घूमता वह
सबों की मंगल कामना करता वह
कहलाता वह भिखारी
थोडा लेकर बहुत कुछ दान किये चलता वह
कही प्यार, कहीं  दुत्कार
कहीं  सान्तवना, कही नसीहत
कही मिलते ठोकर ,कही कटु वचन
सबों के लिये निकलते 
उसके मुख से एक ही स्वर 
अल्लाह के नाम पे दे दे ......

4/25/2012

नई ऊर्जा: An encouraging Poem






कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा 
लाख दुखों को दोष दें 
दुःख संग ही जीना होगा.

कोई हो  कसक या  उलझन 
उसे दुःख पे न थोपो तुम
हो कोई समस्या जीवन में
समाधान  तुम्हे ही बनना होगा
कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.

अगर है तन्हाई जीवन  में
दुनिया को नीरस  न बताओ  तुम 
दुनिया तो है चंचल 
चलती रहती अपने धुन में
तुम्हे अपने धुन में चलना होगा
मंजिल तक रमना होगा
कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.



पिपासा भरी पड़ी है तेरे अन्दर
वो तुम्हे खोने का ही अहसास कराती है 
खोया तमने कुछ  होगा,वो उसे बड़ा बताती है
पाया है तुमने जो बहुत कुछ
उसका ध्यान आप ही करना होगा
दुःख से हटकर खुद को  सुख से भरना होगा
कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.

सपने अधूरे हैं अगर तुम्हारे
स्वपर्निल संसार को दोष न दो
भ्रमित किया है इसने तुमको
कह कर,खुद को दोष मुक्त न करो
अगर  किया है गलती कुछ तुमने
साहस के साथ स्वीकार करना होगा
खुद को अच्छाई से भरना होगा
कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.

दुःख में वो दम कहाँ
जो तुम्हे तोड़ दे
दुःख तो है कमजोर साथी
हमें उव्देलित कर अपनी कमजोरी छुपाती है
सुख तो है शर्मीला साथी,अपनी पहचान छुपाती है
उसे मजबूत बना,खुद को मजबूत करना होगा
कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.

सिर्फ यही नहीं दर्शन  जीवन के
इसे तो बस एक छाया मानकर चलना होगा
दुनिया   तो   दर्शन   से  भरी  पड़ी
इसकी हर छटां, बिखेरती एक दर्शन नई
तुम्हे हर दर्शन को समझकर चलना होगा
खुद तुमको,एक जीवन दर्शन बनना होगा
खुद को नई ऊर्जा से बहरना होगा

कण-कण से हम बने हैं
कण-कण में ही बटना होगा.
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4/24/2012

"जीये तो वो हैं"

खुद को संयमित करके 
जो पहाड़ो को जितने का हौसला रखे  
धाराओं को चीर करके जो उस पार पहुंचे
जीये  वो हैं,
हम सिर्फ जिन्दा हैं.

रस्ते के काँटों को देख कर भी 
जो कभी न रुके
पथरीले राहों पर भी 
जो निरंतर बढ़ते रहे
जीये  वो हैं,
हम  सिर्फ जिन्दा हैं.

खुद के जख्मों को खुरेद्कर
जो औरों के जख्म भरे
खुद के आंसू पी कर
जो औरों के आंसू पोछने का मद्दा रखे 
जीये  वो हैं,
 हम  सिर्फ जिन्दा हैं

वक़्त चाहे कितना भी कठिन हुआ हो
खुद को सदा,अपने सपने से जोड़कर रखे
जब औरों को उनकी जरूरत पड़ी
खुद के सपने तोड़ने से जो पीछे न हटे
जीये  वो है,
हम  सिर्फ जिन्दा हैं.


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4/22/2012

"रंग भर दो "



सादा है तन मेरा
रंग भर दो
अकेले हूँ पथ पर 
संग चल दो
जीवन है नीरस  मेरा
रंग भर दो
खो गए साथी मेरे 
साथ हो जाओ तुम
मेरे जीवन में उमंग भर दो
सादी है जिन्दगी मेरी 
रंग भर दो
धीरे-धीरे चलकर 
थक गया हूँ मै 
मेरे संग तेज चलकर 
मुझमे लगन भर दो
सादी है जिन्दगी मेरी
रंग भर दो
खो गए है सपने सारे
बदरंग  हो गए सपने हमारे
मेरे सपनो के संग चल दो
 मेरे सपनो में रंग भर दो
सादी है जिन्दगी मेरी 
रंग भर दो.



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4/21/2012

"एक खेल "




हर किशोर ने एक खेला होगा
विरह वेदना और संताप को झेला होगा
कुछ टूट कर बिखर गए होंगे
कुछ ने टुकरो में खुद को समेटा होगा .

हर किशोर ने खेला होगा
प्यार के पत्थर को उछालकर 
एक दुसरे पर फेका होगा 
हँसी और उल्लास को बटा होगा 
एक दुसरे पे मरने को आतुर 
हर किशोर हुआ होगा.

हर किसी को हमउम्र  की तलाश होती है
पर एक किशोर जब एक किशोर से जुड़ा होगा
सामाजिक बंधन उसे क्यों जकड़ा 
क्या बुराई है, हमारे रिश्ते में
क्यों उठाई उँगलियाँ लोगो ने
ये सवाल हर किशोर मन झकझोरा होगा.

हर किशोर ने झेला होगा
बेमतलब रोक-टोक की गलानी को
उसकी बुद्धि   कहे जो ठीक है ,उसे
गलत किसी ने बोला होगा
बालको ने कम, बालिकाओं ने ये दंस ज्यादा झेला होगा
रोकर खुद को जलती क्यों हो
विद्रोह करने का उनका  मन भी बोला होगा
कुछ ने खुद को दबाये  रखा 
कुछ ने तसलीमा बनकर मुंह खोला होगा
बदले में मौत का फतवा/ मौत पाया होगा
किसी को भाई ने गला दबाया
किसी को पिता या पति ने बेरहमी से मारा  होगा.

हर किशोर ने एक खेला होगा 
परम्परा से हटकर कुछ करने को सोचा होगा
होकर उदास कभी,
गुस्से से भरकर
दुनियां जलने को सोचा होगा

हर किशोर ने एक खेल खेला होगा
जीवन को दाव पे लगा 
सपनों  में उलझा होगा
कुछ सपनों के जाल  को तोड़
मंजिल तक पहुंचा होगा 
कुछ इस जाल  में उम्र भर उलझा होगा

हर किशोर अपनी शक्ति की आग में झुलसा होगा
कुछ ने अपनी शक्ति को सच में परखा होगा 
कुछने   व्यर्थ  के कामों में 
अपनी शक्ति को खोया होगा 
कुछ ने अपनी शक्ति को 
अपने सपनों से  जोड़ा होगा.

हर एक किशोर ने खेला होगा 
 खुद में कभी उलझा होगा 
खुद में कहीं खोया होगा 
दुसरे को पाया बहुत थोडा होगा 
कुछ्ने सचमुच में ,खुद को बड़ा बना पाया होगा 

हर किशोर ने देखा होगा 
खुद को असमान में 
कुछ असमान तक सचमुच पहुंचा होगा 
कुछ के दिल को ठेस पहुंचा होगा 

कोई नहीं समझता हमें ,पाया होगा 
अपनी भावनाओं  को समझाने  को आतुर 
एक किशोर को ढूंढा होगा 
किशोर को, किशोर ही,
 समझ सकता है और कोई नहीं
हर किसी ने अपने उम्र में ,
ये दंस झेला होगा.

हर किशोर ने दुनियां को समझने का खेल खेला होगा
पर दुनियां कब समझी समझाने से 
कुछ  खुद  पर अड़े रहे होंगे 
कुछ ने दुनियां के साथ 
मजबूर होकर जीना सीख लिया होगा.

  हर किशोर ने एक खेला होगा
विरह वेदना और संताप को झेला होगा
कुछ टूट कर बिखर गए होंगे
कुछ ने टुकरो में खुद को समेटा होगा .



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4/19/2012

"मुझको अमर कर दो "

अपने होंठो से कब तक लेता रहूँ नाम
ऑंखें मुंद कर कब तक तुझे देखता रहूँ प्राण 
कभी इन खुले आँखों को भी दर्शन दो
लेकर मेरा नाम  मुझको अमर कर दो.

 मेरी आत्मा को तृप्त होने दो 
मुझको अपने दिल में बसा  लो 
मुझ में और खुद में भेद मिटा दो 
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

तेरी रेशमी बिखरे बालों को,
मै सुलझाना चाहता हूँ
तेरे मोती जैसे मोटे आसूं 
मै पीकर प्यास मिटाना चाहता हूँ
मेरे समर्पण को स्वीकार 
तुम भी समर्पण कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

कितना प्यार है तुम से मुझको 
कैसे दर्शाऊं तुम्ही कहो
जैसे तुम्हे विस्वास हो वही कर दिखलाऊं
थोड़े से मेरे सपने हकीकत कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर का दो.

जिन्दगी क्या है? सिखा दो
विस्वास क्या है? बता दो
शमाँ  की तरह जलकर ,मुझको भी
जलने का वैभव दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

शमाँ  अकेले भी जल सकती है 
पर परवाने क्या जल सकते है? शमाँ बगैर 
हो कोई तरकीब तो, हमें दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

तू भी अधूरी मै भी अधुरा 
एक दुसरे से ही हम है पूरा
तेर मेरे बैगर रह जायेगा प्रेम पथ सुना
लेकर मेरा नाम दिल से 
प्रेमपथ अमर कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.
     
                          विक्रम प्रशांत 

"सुख की खोज "

आनन्ददायक सुख की खोज में जुट जाओ 
जीवन में अपर सफलता पाओ
अभी से लग जाओ इसके खोज में 
सुख से प्यार करो ,दुःख भूल जाओ
दूसरों को दोष  न   दो 
खुद पर विश्वास करो 
जीवन है सुख से जीने के लिए 
  इसकी खोज करो.
सुख की खोज में जुट जाओ 
जीवन को भूल जाओ 
ऐसा कभी न  करना 
सोचो, जब जीवन नहीं ,
सुख का क्या फायदा.

4/17/2012

"बिखरे तिनके "

                                                           

बखरे तिनके को जोड़कर ,
चिड़ियाँ घर बनती है,
परिश्रम के बल पर ,
घर को सजाती है,
जीवन के हर कष्ट को झेल कर ,
खुशी पूर्वक  गुण-गुनती है,
शर्दी, गर्मी, और सरद ,
अपने सुनहरे पंख ,
लहराती है.
ऊँचे आकाश में सदा,
 उड़ने की तमना,उसके
                                                                                     आँखों में नजर आती हैं.
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4/16/2012

"राह खुद निकालें :motivational poem"



दर्द है हमें ,
कहने की जरुरत है क्या ?
जो हैं अपने सपने से दूर ,
उन्हें आंसू दिखलाने की जरुरत है क्या?


अपने सपने को पूरा ,
लक्ष्य की प्राप्ति हेतु,
झोक दो अपना समर्थ सारा 
ये बतलाने की  जरुरत है क्या ?

कठोर परिश्रम के आगे ,
दिवासव्प्न का महत्व क्या ?
लक्ष्य के आगे ,
दुःख-सुख नहीं बना करते बाधा.

लाख राह दिखलायेंगे लोग,
खुद ही रखना पड़ता है हमें अपना लेखा-जोखा,
दर्द है हमें,
 कहने की जरुरत है क्या?

खुद के गम को छुपाये रखें ,
ख़ुशी को बढ़ाते चलें,
सभी हो जायेंगे अपने ,
ये बतलाने की जरुरत है क्या?

चलना कहाँ है ,राह खुद निकालें ,
यदि अभी तक नहीं निकलें हों, कही के लिए 
अब तो कदम  बढ़ाएं ,
बतलाने की जरुरत है क्या?

दर्द है हमें ,
कहने की जरुरत है क्या?
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4/15/2012

"अदान प्रदान "

                                     जब तुम मुझे देखती हो,
  मुझे ऐसा लगता है 
  एक किरण आकर मुझसे टकराई 
  जब तुम मुझे देखकर 
  मुस्कुराती हो ,
  मुझे ऐसा लगता है 
  एक अवाज आकर मुझसे टकराई    

  जब तुम अकेले में मुझसे मिलती हो
 चाहता है दिल मेरा 
तुम से बातें करूँ ढ़ेर सारी
तभी दिल में एक आहट हुई 
                                     निहारता रहूँ बस 
                                     बातें करने की  कोशिश  में 
                                     समय क्यों व्यर्थ करूँ 
                                      प्यार तुमसे करता हूँ 
                                      मै तुम से क्यों कहूँ 
                                      ये होंठो पर कभी न आए
                                      तुम हो मेरी जरुरत 
                                      मै तुम से कहूँ , तुम मुझसे कहो
                                      जाने मन मै तुम से बहुत प्यार करता हूँ 
                                      इसमें अदान प्रदान की क्या जरुरत .
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आगे बड़ते जाओ

निकल कर इस दुनिया से ,
नई दुनिया बनाओ 
ऊँचे ऊँचे सपने आँखों में बसाओ 
आगे बढ़ते जाओ .

रह में पड़े पत्थर को 
लाँघ कर पर कर लो 
जीवन को बढाओ 
आगे बढ़ते जाओ .

जिसमे हो सबकी ख़ुशी 
वो कम कर दिखलाओ 
अँधेरे में दीपक जलाओ 
आगे बढ़ते जाओ .

निराश न हो जीवन से
दुःख  से आंख मिलाओ
हँस कर दुःख भगाओ
आगे बढ़ते जाओ.

आँखों में भर लो अंगारे 
जिसे देख दुश्मन भागे 
क्रांति की मशाल जलाओ 
आगे बढ़ते जाओ.



4/13/2012

"तुम क्या हो "


हे नेह ,मुझे कभी लगता है 
तुम एक निर्मल नदी हो 
कभी लगता है तुम मेरे लिए घड़ी हो
अगर मुझे पाना है तो 
जल्दी छलांग लगाओ  .

कभी लगता है तुम जंगल हो 
हमेशा मुझे उलझा कर रखती हो 
कभी मुझे कुछ लगा कभी कुछ 
एक जैसी तुम कभी न थी 
हर छन हर घड़ी बदलती रही. 

कभी लगा तुम ख्वाब हो,
जो पूरा  नहीं हो ,
कभी लगा तुम ,
मेरे दिल  की अरमान हो 
मुझसे जुदा कभी नहीं .
शायद तुम छाया हो 
रहती साथ साथ हर घड़ी. 

नहीं नहीं तुम तो हो एक जिद्दी लड़की ,
हर वक़्त अपने जिद पे अटकी 
तो अगले ही पल तुम से जाना 
तुम्हे झूठ बोलने में प्राप्त है पी. एच. डी.
लेकिन चिढने में हो नॉन मैट्रिक .

कभी तुम्हे अपने आत्मविश्वाश को बढ़ाते पाया 
कभी "ना" के बदले "हाँ " कहने की सीख  पाया 
हर भूमिका में तुमको मैंने मुनासिफ पाया .

हे नेह तुम तो हो मेरी ही रचना 
जिसे मैंने रचा हो 
अपने लिए अपने हाथो से
तुम मुझ से अलग कहाँ हो 
मुझे लगता है 
तुम तुम नहीं मै हूँ 
शांत, गंभीर , निर्भीक 

तुम दर्द हो और दावा भी
पानी भी हो और हवा भी 
शांत हो ,ज्वाला भी
तुम जाने हुए हो ,अंजान भी 
हर घड़ी तुम्हे अलग जाना 
शयद,तुम  प्रकाश  हो 
रहती हो  हर कहीं .

तुम सीधी हो, चंचल हो,
आईने सा निर्मल हो 
तुम सागर सी ग़हरी हो 
आसमान की उच्चाई हो
तुम मेरी साथी हो .

तुम मध्य बिंदु हो
मेरे जीवन की ,
नायिका हो
मेरे कविता की 
मेरे तर्क वितर्क की.

अब  मुझे लगता है 
तुम ख्वाब नहीं
एक सच्चाई हो
तुम मेरी साथी हो.


" टूटीं पंग्तियाँ "

इन टूटी फूटी पंग्तियों का
इस टूटी फूटी जिन्दगी से ,
क्या वास्ता,
ए खुदा अब तू ही हमें
दिखा कोई रास्ता.

अँधेरा छाया आँखों पे
दिखता नहीं दूर तक दिया,
ए खुदा अब तू ही हमें
दिखा कोई तारा रोशनी का.


बिखर न जाऊं मै,हमें
लोहे सा बना
खाकर ठोकर चटान की भी,
टिका रहूँ मै , सदा.


दुःख  से  भर कर भी
गम के पहाड़ों पर चढ़ कर भी
मेरे ह्दय ,
ओढ़े मुस्कराहट का पर्दा  .

प्यार भर दो इतना ,
कडवे बचनो में भी बिछ लूँ प्यार  जितना ,
मिट जाये  नफरत, नफरत की  समझ ,
दूँ दुनिया को प्यार सदा.

भूल चुकी दुनिया, प्यार क्या ?
दूर तक नहीं दिखता
हमें  इसका निशान
ए खुदा अब तू ही हमें बता
प्यार क्या ?महत्व क्या, प्यार का

न हो कोई गैर
न हो किसी से  बैर
जिससे मिलूं मुस्कुरा कर मिलूं
भर दूँ ह्दय
प्यार से लबालब .

मै जाऊं  जिधर
छलकता जाऊं प्रेम
मिटाता जाऊं अँधेरा
दिखता जाऊं सभी को
वो रोशनी का तारा .

इन टूटी पंग्तियों का
इस टूटी फूटी जिन्दगी में
महत्व क्या
ए खुदा अब तू ही हमें
दिखा कोई रास्ता .