4/19/2012

"मुझको अमर कर दो "

अपने होंठो से कब तक लेता रहूँ नाम
ऑंखें मुंद कर कब तक तुझे देखता रहूँ प्राण 
कभी इन खुले आँखों को भी दर्शन दो
लेकर मेरा नाम  मुझको अमर कर दो.

 मेरी आत्मा को तृप्त होने दो 
मुझको अपने दिल में बसा  लो 
मुझ में और खुद में भेद मिटा दो 
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

तेरी रेशमी बिखरे बालों को,
मै सुलझाना चाहता हूँ
तेरे मोती जैसे मोटे आसूं 
मै पीकर प्यास मिटाना चाहता हूँ
मेरे समर्पण को स्वीकार 
तुम भी समर्पण कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

कितना प्यार है तुम से मुझको 
कैसे दर्शाऊं तुम्ही कहो
जैसे तुम्हे विस्वास हो वही कर दिखलाऊं
थोड़े से मेरे सपने हकीकत कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर का दो.

जिन्दगी क्या है? सिखा दो
विस्वास क्या है? बता दो
शमाँ  की तरह जलकर ,मुझको भी
जलने का वैभव दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

शमाँ  अकेले भी जल सकती है 
पर परवाने क्या जल सकते है? शमाँ बगैर 
हो कोई तरकीब तो, हमें दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.

तू भी अधूरी मै भी अधुरा 
एक दुसरे से ही हम है पूरा
तेर मेरे बैगर रह जायेगा प्रेम पथ सुना
लेकर मेरा नाम दिल से 
प्रेमपथ अमर कर दो
लेकर मेरा नाम मुझको अमर कर दो.
     
                          विक्रम प्रशांत 

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