गली गली हर
चौराहे पर
बाल बचपन
ज़िन्दगी के दोराहे पर
यहाँ हर कोई
मुरलीवाला है
अब गोपियाँ
बेचारी क्या करें
किसके लिए
सुध-बुध खोये
किसको
स्वामी मान मान जीवन सुख भोगे
बड़ी व्यथा
है बड़ी उलझन है
एक नहीं अब
यहाँ सभी गिरिधर हैं
प्रश्न उठता हो उनके भी मन में
बदला है दौर
अब वो क्या करे वृंदावन में
बदल गया है
प्रेम बीते कल का वो क्या करे
प्रेम की नई
परिभाषा गढ़े या जिया बन जीवन त्याग करे
बाँटने को तो खुद को वो
बाट दे
पर मन की
अधीरता क्या करे
जब तक
ना मिले मन असली मोहन से
वो हर नकली
मोहन का क्या करे.
1 टिप्पणी:
Really a wonderful piece of poetry. Hope you will visit out site www.sureshotpost.com
एक टिप्पणी भेजें