11/24/2016

महबूब तू तो बदल

प्यार तो करता हूँ
जैसा मैं चाहता हूँ
जैसा तुम चाहती हो
पर इस अँधेरे में जीना कैसा
जहाँ सपने भी दिखाई न देते हों।
कुछ दूर चालना
बहुत देर रुक जाना
मेरा दोहरापन थकने का नाम ना लेता है
यूँ तो भरा हूँ बदलाव के छावँ से
लेकिन बदलाव मुमकिन नहीं मान बैठा हूँ
और घर से निकला ही नहीं।
प्यार इंतज़ार कर
महबूब तू बदल जिन्दा हो
मुझे लाश होने से बचा ले,
मेरे दोहरेपन को हवा न दे
मेरा दोहरापन यूँ भी कहाँ थकता है।

नदी को बहने देना ही मेरा मकसद है
तू मत सोच की नदी उलटना चाहता हूँ मैं
साथ चल देख
क्या नदी बहती है अभी।

रुकी हुई जो धार अभी
उसका क्या
कुछ भी नहीं
रुके रहने दूँ
जैसे रुकी थी
मेरे महबूब उसकी कड़वाहट तू महसूस तो कर
चल मेरे संग दो घुट लगा
उस रुकी हुई तालाब की भी
जो कभी बही ही नहीं।

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