9/02/2018

अकेलापन



घोर अकेलापन है साथी
साथ में ज़ुल्मतों के दौर का होना
और बीच बीच में मेरा तुम्हारा साथ छोड़ देना
दुविधा जगाती हैं
हर सुबह सूरज का उग जाना।

घोर अकेलापन हैं साथी
साथ में तेरा रूठ जाना
और मेरा तुम से लड़ जाना
दुविधा जगाती हैं
प्यार के मौसम का होना।

काफी नहीं हैं साथी
विरह की लपट से
सिर्फ हम दोनों का बच जाना
काफी नहीं हैं
हम दोनों का प्यार में होना,
हमें जल्दी मान लेना होगा साथी
माकूल नहीं हैं
हम दोनों का खुद में डूब जाना
मेरी बैचैनी को तुम्हारा सम्हाल लेना
तुम्हारी बेचैनी को मेरा सम्हाल लेना
और मुनासिफ भीं नहीं हैं साथी
हम दोनों की बेचैनी का मिट जाना।

हमें सच को जल्दी अंगीकार करना होगा प्रिये
इश्क़ का अभी सहर नहीं हैं
मोहबत के लिए खड़ा कोई मजहब नहीं हैं
हर धर्म हमारे प्यार के खिलाफ खड़ा हैं
हर अंध हमारा दुश्मन हैं।

सिर्फ हमारा मिल जाना
सब कुछ हासिल नहीं है प्रिये
तुम्हारा नेह होना सिर्फ काफी नहीं प्रिये
विरह वेदना समाज की कुरुरता की निशानी है
ऐसे में हम दोनों का मिल जाना
सिर्फ आधा सच हैं
पूरा सच हर धड़कन में
मरा पड़ा है
हर जर्रे में दफ़न हुआ हैं
और सुबह का सूरज
अकेलेपन से उपजे अंधेरे को
और गहराता हैं।



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