11/01/2012

मुस्कुराहट का आंचल

सुंदर तन सुन्दर मन 
और तो और 
ओढ़ ली हो जैसे 
मुस्कुराहट का आंचल 
लगती हो कोई परी 
आखें खुली हो या बंद
मिलती रहती हो  हर कहीं 
ऐसा लगता है तुम हो हकीकत 
चाहता हु जब स्पर्श तेरा 
बदल लेती हो अपना बसेरा  
तुम क्या हो समझ नही पता हूँ  
हो हकीकत या कोई परी 
रास्ते तो बहुत है 
 तेरे पास पहुचने का 
तेरे पास पहुँचता हूँ वैसे 
जैसे सीसे के उस पार तुम हो 
इस पर मै खड़ा  हूँ  
देखता हूँ तुमको टकटकी लगा 
बोलना चाहता हूँ  
मै  हूँ  अधुरा 
तुझे मेरे हिलते होठ दिखते  होंगे 
मेरे शब्द तेरे कानों तक पहुचने से पहले 
दम तोड़ देते हैं 
मेरी बेबसी पर ततछन
ओढ़ लेती हो तुम 
मुस्कुराहट  का आंचल 
मै हो जाता हूँ  पूरा .
   


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